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"अनमने दिन / अनिल जनविजय" के अवतरणों में अंतर

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कलप रहा है तन
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जैसे भू-अगन
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दिन आए फिर कराहों के

00:39, 24 जून 2007 का अवतरण


दिन बीते

रीते-रीते

इन सूनी राहों पे


मिला न कोई राही

बना न कोई साथी

वन सूखे चाहों के


याद न कोई आता

न मन को कोई भाता

घेरे खाली हैं बाहों के


कलप रहा है तन

जैसे भू-अगन

दिन आए फिर कराहों के