भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"माँ कहती है / राजेश जोशी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजेश जोशी }} हम हर रात <br> पैर धोकर सोते है<br> करवट होकर।<br>...)
 
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=राजेश जोशी
 
|रचनाकार=राजेश जोशी
}}
+
|संग्रह=एक दिन बोलेंगे पेड़ / राजेश जोशी
 +
}}{{KKCatKavita}}
 +
{{KKAnthologyMaa}}
 +
<poem>
 +
हम हर रात
 +
पैर धोकर सोते है
 +
::करवट होकर।
 +
::छाती पर हाथ बाँधकर
 +
चित्त
 +
हम कभी नहीं सोते।
  
हम हर रात <br>
+
सोने से पहले
पैर धोकर सोते है<br>
+
माँ
करवट होकर।<br>
+
टुइयाँ के तकिये के नीचे
छाती पर हाथ बाँधकर<br>
+
::सरौता रख देती है
चित्त<br>
+
::बिना नागा।
हम कभी नहीं सोते।<br><br>
+
माँ कहती है
 +
डरावने सपने इससे
 +
::डर जाते है।
  
सोने से पहले<br>
+
दिन-भर  
माँ<br>
+
फिरकनी-सी खटती
टुइयाँ के तकिये के नीचे<br>
+
माँ  
सरौता रख देती है<br>
+
हमारे सपनों के लिए
बिला नागा<br>
+
माँ कहती है <br>
+
डरावने सपने इससे<br>
+
डर जाते है।<br><br>
+
 
+
दिन भर <br>
+
फिरकनी सी खटती<br>
+
माँ <br>
+
हमारे सपनों के लिए<br>
+
 
कितनी चिन्तित है!
 
कितनी चिन्तित है!
 +
</poem>

01:39, 20 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

हम हर रात
पैर धोकर सोते है
करवट होकर।
छाती पर हाथ बाँधकर
चित्त
हम कभी नहीं सोते।

सोने से पहले
माँ
टुइयाँ के तकिये के नीचे
सरौता रख देती है
बिना नागा।
माँ कहती है
डरावने सपने इससे
डर जाते है।

दिन-भर
फिरकनी-सी खटती
माँ
हमारे सपनों के लिए
कितनी चिन्तित है!