भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पहाड़ / अजेय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: <poem> (चित्रकार सुखदास की पेंटिंग्ज़ देखते हुए ) '''अकड़''' रंग बरंगे …)
(कोई अंतर नहीं)

18:36, 20 अप्रैल 2011 का अवतरण


(चित्रकार सुखदास की पेंटिंग्ज़ देखते हुए )
 
अकड़
  
रंग बरंगे पहाड़
रूह न रागस
ढोर न डंगर
न बदन पे जंगल......
अलफ नंगे पहाड़ !
साँय साँय करती ठंड में
देखो तो कैसे
ठुक से खड़े हैं
ढीठ
बिसरमे पहाड़ !
 
चुप्पी
 
काश ये पहाड़
बोलते होते
तो बोलते
काश
हम बोलते होते

सुरंग
 
पर ज़रा सोचो गुरुजी
जब निकल आयेगी
इस की छाती मे एक छेद
और घुस आएंगे इस स्वर्ग मे
मच्छर
साँप बन्दर
टूरिस्ट
और ज़हरीली हवा
और शहर की गन्दी नीयत
और घटिया सोच, गुरुजी
तब भी तुम इन्हे ऐसे ही बनाओगे
अकड़ू
और खामोश ?
 

1996