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"ढालपुर कॉलेज से लौटती लड़कियाँ / अजेय" के अवतरणों में अंतर

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(नया पृष्ठ: <poem> '''लड़कियां''' सेण्डिल सटकाती चलती हैं ढालपुर की फुटपाथों पर…)
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18:58, 20 अप्रैल 2011 का अवतरण


लड़कियां
         सेण्डिल सटकाती चलती हैं
ढालपुर की फुटपाथों पर
चुस्त-फुर्त
गोल-मटोल
चटक-चट्ट लड़कियां
आंखों से मुस्काती
खुश्बुएं बिखेरती
भेखड़ी बिजलेश्वर काईस और रोहतांग से उतरी ये लड़कियां
चपर-चपर खरीददारियां करती
बाज़ार की भीड़ में ऐसे घुलमिल जाती हैं कभी
इन्हें अलग-अलग पहचानना कठिन हो जाता है।

सपने
तैरते रहते हैं सपने
इनकी छोटी चमकीली आंखों में
अपने-अपने सपने
तरह-तरह के -
ज़िन्दगी में कुछ अलग कर दिखाने के
कुछ ढरेZ पर चलती ज़िन्दगी का हिस्सा बन
औरों के जैसे बन जाने के।
ज़्यादातर तो किसी के कंधे से कंधा मिला
हाथों में हाथ डाल
बहुत दूर निकल जाने के
और कुछ थोड़े से, सब से अलग
बहुत दूर निकले हुओं के उजड़ते घर सम्भालने के
आश्चर्यजनक
अजीबो गरीब
सपने ही सपने।


मछलियां

         सपने एक पल को
         तिर आते हैं पानी की सतह पर
         झुण्ड के झुण्ड
चान्दी सा चमकते
फिर लहरों में विलीन हो जाते हैं सहसा
छोड़ जाते पीछे
ठहरी हुई नदी का कांपता यथार्थ।
फिर इन सपनों को अलग-अलग पहचानना कठिन हो जाता है।

मछुआरा
         बस चन्द दिन और.....
किसी दुश्चिंताओं से भरी दोपहर
जब भीमकाय युक्लिप्टस झूल रहे होंगे सड़क के किनारे
मछुआरा समय
चुपके से उतार रहा होगा व्यासा में अपना जाल
आतंक से बेतरतीब हो रही होगी मछलियां
धीरे-धीरे बिछुड़ने लगेंगी लड़कियां
फिर पनीली आंखों में
कुछ और सपने लिए आएंगी लड़कियां
फिर उन सपनों और लड़कियों को
अलग-अलग पहचानना कठिन हो जाएगा।

         
         1985