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"एक और सुबह / के० शिवारेड्डी" के अवतरणों में अंतर

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सभी घरों के आगे भिन्न रंगों के पत्ते गिरकर
 
सभी घरों के आगे भिन्न रंगों के पत्ते गिरकर
खूबसूरत कलमकारी में रूपायित होती है
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ख़ूबसूरत आकल्पना में बदल जाते हैं
एक गृहिणी कमर में हाथ रख
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एक गृहिणी कमर में हाथ रखे
उनींदापन और आलस्य को झाडू लगा रही है।
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उनींदेपन और आलस्य में घिरी झाडू लगा रही है ।
पौधे , पेड और फूलों पर दयापन सा
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पौधों, पेड़ों और फूलों पर  
पतला कुहरा ठहर गया,
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बारीक कुहरा ठहर गया,
शायद सुबह को सब कुछ
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शायद सुबह के समय
 
अपनी स्वाभाविक कठोरता खोकर
 
अपनी स्वाभाविक कठोरता खोकर
  
बडे शान से मृदुल बन जाता है
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गृहिणियों, बच्चों, पिल्लों और चिडियों की
गृहिणियों , बच्चे, पिल्लों और चिडियों की
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स्वाभाविक  सुंदरता चकित करनेवाली है ।
पहली जागृत सुंदरता चकित करनेवाला है।
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हम बिस्तरों पर पिघलकर भाप छोड़ते हुए
हम बिस्तरों पर पिघलकर और भाप छोड
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तालाबों की तरह कोमलता से काँपते हैं
तालाबों की तरह कोमलता से हिलते हैं
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वे हाथ हमारे आँगन को
वे हाथ हमारे आंगन को
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साफ़ करने के लिए बढ रहे हैं
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कुछ रंगोली बनाकर चले जाते हैं और
 
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कुछ चाबुक लेकर निकलते हैं।
 
कुछ चाबुक लेकर निकलते हैं।
तब तक हम दाडिम के पेड के पास
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तब तक हम दाड़िम के पेड़ के पास
 
इकटठे हो जाते हैं,
 
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सर्दी की आग, हाथ पांव , चेहरे को तापित कर
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आग, हाथ-पाँव और चेहरे को तप्त करती है
हम में आग का स्वागत करते हैं।
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हम सरदी में आग का स्वागत करते हैं।
किसी मॉं ने उॅंगली से
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किसी मॉँ ने अपनी उँगली से
आसमान में छेद किया होगा।
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आसमान में छेद किया होगा ।
मुटठी को कसकर धीमा रेाता हुआ
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धीमे स्वर में रोता हुआ
एक सुंदर बच्चा हमारे सिर के उपर प्रकट होगा ।
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एक सुंदर बच्चा अपनी मुटठी कसे हमारे सिर के ऊपर प्रकट होगा ।
यदि दुनियाके सारे कवि
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स्ुबह की वेला पर एक कविता लिखेंगे
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यदि दुनिया के सारे कवि
फिर भी यह अनछुआ, अनर्सूंघा
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सुबह की इस वेला पर एक कविता लिखें
विलक्षण और मोहक रहेगा
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तब भी इस अनछुए और अनसूँघे क्षण की
पूरा शरीर एक छोटी सी
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विलक्षणता और मोहकता बनी  रहेगी
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पूरा शरीर एक छोटी-सी
 
कविता में सिकुडकर आगे बढेगा
 
कविता में सिकुडकर आगे बढेगा
जो कोर्इ्र भी हो , उसे अंजुली भर पानी लेकर
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हम सभी को अंजुली भर पानी लेकर
जिंदगी के प्रति श्रृद्धांजलि अर्पित कर जीना है।  
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जीवन के प्रति श्रद्धा अर्पित करते हुए जीना है।  
  
 
'''मूल तेलुगु से अनुवाद : संतोष अलेक्स'''
 
'''मूल तेलुगु से अनुवाद : संतोष अलेक्स'''
 
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21:50, 20 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: के० शिवारेड्डी  » एक और सुबह

सुबह-सवेरे कॉफ़ी का स्वाद लेते हुए
नेरूदा की कविताओं को
याद करना कितना अद्भुत्त है।
जैसे किसी नए जीवन में
प्रवेश कर रहे हों हम
मन और शरीर हल्का होकर
सुबह के कुहासे में गुम हो जाता है

सभी घरों के आगे भिन्न रंगों के पत्ते गिरकर
ख़ूबसूरत आकल्पना में बदल जाते हैं
एक गृहिणी कमर में हाथ रखे
उनींदेपन और आलस्य में घिरी झाडू लगा रही है ।
पौधों, पेड़ों और फूलों पर
बारीक कुहरा ठहर गया,
शायद सुबह के समय
अपनी स्वाभाविक कठोरता खोकर

गृहिणियों, बच्चों, पिल्लों और चिडियों की
स्वाभाविक सुंदरता चकित करनेवाली है ।
हम बिस्तरों पर पिघलकर भाप छोड़ते हुए
तालाबों की तरह कोमलता से काँपते हैं
वे हाथ हमारे आँगन को
साफ़ करने के लिए बढ रहे हैं
कुछ रंगोली बनाकर चले जाते हैं और
कुछ चाबुक लेकर निकलते हैं।
तब तक हम दाड़िम के पेड़ के पास
इकटठे हो जाते हैं,
आग, हाथ-पाँव और चेहरे को तप्त करती है
हम सरदी में आग का स्वागत करते हैं।
किसी मॉँ ने अपनी उँगली से
आसमान में छेद किया होगा ।
धीमे स्वर में रोता हुआ
एक सुंदर बच्चा अपनी मुटठी कसे हमारे सिर के ऊपर प्रकट होगा ।

यदि दुनिया के सारे कवि
सुबह की इस वेला पर एक कविता लिखें
तब भी इस अनछुए और अनसूँघे क्षण की
विलक्षणता और मोहकता बनी रहेगी ।
पूरा शरीर एक छोटी-सी
कविता में सिकुडकर आगे बढेगा
हम सभी को अंजुली भर पानी लेकर
जीवन के प्रति श्रद्धा अर्पित करते हुए जीना है।

मूल तेलुगु से अनुवाद : संतोष अलेक्स