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"बारिश : चार प्रेम कविताएँ-3 / स्वप्निल श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
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एक दिन मैं तुम्हें | एक दिन मैं तुम्हें | ||
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भीगता हुआ देखना चाहता हूँ | भीगता हुआ देखना चाहता हूँ | ||
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प्रिये | प्रिये | ||
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बरिश हो और हवा भी हो | बरिश हो और हवा भी हो | ||
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झकझोर | झकझोर | ||
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तुम जंगल का रास्ता भूल कर | तुम जंगल का रास्ता भूल कर | ||
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भीग रही हो | भीग रही हो | ||
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एक निचाट युवा पेड़ की तरह | एक निचाट युवा पेड़ की तरह | ||
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तुम अकेले भीगो | तुम अकेले भीगो | ||
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मैं भटके हुए मेघ की तरह | मैं भटके हुए मेघ की तरह | ||
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तुम्हें देखूँ | तुम्हें देखूँ | ||
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तुम्हें पता भी न चले कि | तुम्हें पता भी न चले कि | ||
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मैं तुम्हें देख रहा हूँ | मैं तुम्हें देख रहा हूँ | ||
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फूल की तरह खिलते हुए | फूल की तरह खिलते हुए | ||
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तुम्हारे अंग-अंग को देखूँ | तुम्हारे अंग-अंग को देखूँ | ||
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और मुझे पृथ्वी की याद आए | और मुझे पृथ्वी की याद आए | ||
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11:05, 22 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
एक दिन मैं तुम्हें
भीगता हुआ देखना चाहता हूँ
प्रिये
बरिश हो और हवा भी हो
झकझोर
तुम जंगल का रास्ता भूल कर
भीग रही हो
एक निचाट युवा पेड़ की तरह
तुम अकेले भीगो
मैं भटके हुए मेघ की तरह
तुम्हें देखूँ
तुम्हें पता भी न चले कि
मैं तुम्हें देख रहा हूँ
फूल की तरह खिलते हुए
तुम्हारे अंग-अंग को देखूँ
और मुझे पृथ्वी की याद आए