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"आईना रोज़ संवरता कब है / कविता किरण" के अवतरणों में अंतर
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हो न मर्ज़ी अगर हवाओं की | हो न मर्ज़ी अगर हवाओं की | ||
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लाख चाहे ऐ 'किरण' दिल फ़िर भी | लाख चाहे ऐ 'किरण' दिल फ़िर भी | ||
दर्द वादे से मुकरता कब है | दर्द वादे से मुकरता कब है | ||
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17:31, 22 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
आईना रोज़ संवरता कब है
अक्स पानी पे ठहरता कब है
हमसे कायम ये भरम है वरना
चाँद धरती पे उतरता कब है
न पड़े इश्क की नज़र जब तक
हुस्न का रंग निखरता कब है
हो न मर्ज़ी अगर हवाओं की
रेत पर नाम उभरता कब है
लाख चाहे ऐ 'किरण' दिल फ़िर भी
दर्द वादे से मुकरता कब है