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18:36, 22 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

बसों में बिकती हुई शे खरीद मत लेना कहीं ये सोचते रह जाओ ज़िंदगी रही न रही बस एक बार आँखों में सुरमा डाला था फिर उसके बाद चरागों में रोशनी न रही