भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तू / ओएनवी कुरुप

26 bytes added, 19:42, 22 अप्रैल 2011
यहाँ पहुँचते वसंत की जीभ को
तूने उखाड़ दिया और
चिडियों चिड़ियों के चोंच से
कोई आवाज़ नहीं निकलती
तू साँस लेता है हवा में
और पेयजल में
और इनमें मृत्यु का चारा टाँगता है
जिस टहनी पर बैठा हुआ है
उसी को ख़ुद काटता है
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,340
edits