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"विनयावली / तुलसीदास / पृष्ठ 17" के अवतरणों में अंतर

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'''पद 161 से 170 तक'''
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श्री तो सों प्रभु जो पै कहूँ कोउ होतो।
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तो सहि निपट निरादर निसदिन, रटि लटि ऐसो घटि को तो।
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कृपा-सुधा-जलदान माँगियो कहौं से साँच निसोतो।
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स्वाति-सनेह-सलिल-सुख चाहत चित-चातक सेा पोतो।
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काल-करम-बस मन कुमनोरथ कबहुँ कबहुँ कुछ भो तो।
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ज्यों मुदमय बसि मीन बारि तजि उछरि भभरि लेत गोतो।।
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जितो दुराव दासतुलसी उर क्यों कहि आवत ओतो।
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तेरे राज राय दशरथ के, लयो बयो बिनु जोतो।।
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19:11, 23 अप्रैल 2011 का अवतरण