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"तेरी बातें ही सुनाने आये / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर
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क्या कहीं फिर कोई बस्ती उजड़ी | क्या कहीं फिर कोई बस्ती उजड़ी | ||
लोग क्यूँ जश्न मनाने आये | लोग क्यूँ जश्न मनाने आये | ||
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+ | आ ना जाए कहीं फिर लौट के जाँ | ||
+ | मेरी मय्यत वो सझाने आये | ||
सो रहो मौत के पहलू में "फ़राज़" | सो रहो मौत के पहलू में "फ़राज़" | ||
नींद किस वक़्त न जाने आये | नींद किस वक़्त न जाने आये | ||
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12:05, 24 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
तेरी बातें ही सुनाने आये
दोस्त भी दिल ही दुखाने आये
फूल खिलते हैं तो हम सोचते हैं
तेरे आने के ज़माने आये
ऐसी कुछ चुप सी लगी है जैसे
हम तुझे हाल सुनाने आये
इश्क़ तन्हा है सर-ए-मंज़िल-ए-ग़म
कौन ये बोझ उठाने आये
अजनबी दोस्त हमें देख के हम
कुछ तुझे याद दिलाने आये
दिल धड़कता है सफ़र के हंगाम
काश फिर कोई बुलाने आये
अब तो रोने से भी दिल दुखता है
शायद अब होश ठिकाने आये
क्या कहीं फिर कोई बस्ती उजड़ी
लोग क्यूँ जश्न मनाने आये
आ ना जाए कहीं फिर लौट के जाँ
मेरी मय्यत वो सझाने आये
सो रहो मौत के पहलू में "फ़राज़"
नींद किस वक़्त न जाने आये