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खोल चौड़ी कड़ी छाती को प्रति क्षण | खोल चौड़ी कड़ी छाती को प्रति क्षण | ||
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अब नगाड़े कब कड़कते ! | अब नगाड़े कब कड़कते ! | ||
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ढोल, ढीले बोल को ऊपर उठाने | ढोल, ढीले बोल को ऊपर उठाने | ||
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अब नहीं हम ज़ोर भरते ! | अब नहीं हम ज़ोर भरते ! | ||
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अंग-अंग उमंग में नव रंग लेकर | अंग-अंग उमंग में नव रंग लेकर | ||
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अब न दंग मृदंग करते । | अब न दंग मृदंग करते । | ||
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ठंड से ऎंठे हुए, ठिठुरे बहुत ही, | ठंड से ऎंठे हुए, ठिठुरे बहुत ही, | ||
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अब न तबले ही ठनकते !! | अब न तबले ही ठनकते !! | ||
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प्यार-पारावार बारम्बार पा कर | प्यार-पारावार बारम्बार पा कर | ||
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अब न तार-सितार तनते । | अब न तार-सितार तनते । | ||
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लीन अन्तर्गीत के मद पीन में हो | लीन अन्तर्गीत के मद पीन में हो | ||
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बीन के न विहाग तरते । | बीन के न विहाग तरते । | ||
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राव-रंगी, भाव-भंगी, केलि-संगी, | राव-रंगी, भाव-भंगी, केलि-संगी, | ||
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स्वर सरंगी के न सजते । | स्वर सरंगी के न सजते । | ||
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आज बर्बर क्रूर कर्कश विश्व भर को | आज बर्बर क्रूर कर्कश विश्व भर को | ||
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सभ्यता के गाल बजते । | सभ्यता के गाल बजते । | ||
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13:50, 24 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
खोल चौड़ी कड़ी छाती को प्रति क्षण
अब नगाड़े कब कड़कते !
ढोल, ढीले बोल को ऊपर उठाने
अब नहीं हम ज़ोर भरते !
अंग-अंग उमंग में नव रंग लेकर
अब न दंग मृदंग करते ।
ठंड से ऎंठे हुए, ठिठुरे बहुत ही,
अब न तबले ही ठनकते !!
प्यार-पारावार बारम्बार पा कर
अब न तार-सितार तनते ।
लीन अन्तर्गीत के मद पीन में हो
बीन के न विहाग तरते ।
राव-रंगी, भाव-भंगी, केलि-संगी,
स्वर सरंगी के न सजते ।
आज बर्बर क्रूर कर्कश विश्व भर को
सभ्यता के गाल बजते ।