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"माँ का पत्र / कृष्ण कुमार यादव" के अवतरणों में अंतर

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घर का दरवाजा खोलता हूँ
नीचे एक पत्र पड़ा है
शायद डाकिया अंदर डाल गया है
उत्सुकता से खोलता हूँ
माँ का पत्र है
एक-एक शब्द दिल में उतरते जाते हैं
बार-बार पढ़ता हूँ
फिर भी जी नहीं भरता
पत्र को सिरहाने रख
सो जाता हूँ
रात को सपने में देखता हूँ
माँ मेरे सिरहाने बैठी
बालों में उंगलियाँ फिरा रही है।