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08:50, 28 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
दराज़<ref>लम्बी</ref> है शबे ग़म, सोज़-ओ-साज़ साथ रहे
मुसाफ़िरो ! मय-ए मीना गुदाज़ साथ रहे
क़दम-क़दम पे अँधेरों का सामना है यहाँ
सफ़र कठिन है दमे शोला साज़ साथ रहे
ये कोह<ref>पर्वत</ref> क्या है ये दश्ते अलम फ़जा<ref>दुख के जंगल का वातावरण</ref> क्या है
जो इक तेरी निगह-ए-दिल नवाज़ साथ रहे
कोई रहे न रहे एक आह एक आँसू
बसद खुलस<ref>निष्कपटताएँ</ref> बसद इम्तियाज़<ref>विवेक</ref> साथ रहे
ये मयकदा है, नहीं सैर-ए दैर<ref>मस्जिद और मन्दिर</ref> सैर-ए हरम
नज़र अफीफ<ref>पवित्र दृष्टि</ref> दिले पाकबाज़<ref>पवित्र दिल वाला</ref> साथ रहे ।
शब्दार्थ
<references/>