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"द्वेष के विष सर्प / शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर
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− | प्रतिक्रिया की
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− | अग्नि से होकर प्रभावित
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− | घर हमारे आज जलने लगे ।
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− | मंज़िलों को
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− | पर करने के लिए हम
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− | हर तरह का रास्ता चुनने लगे ।
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− | सत्य ने अब
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− | झूठ के दरबार जाकर
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− | टेक कर घुटने
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− | झुकाया शीश है,
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− | बुझदिली को
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− | हर क़दम पर रोशनी से
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− | वीरता का मिल रहा
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− | आशीष है,
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− | स्वार्थ की
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− | जलती शिखा में नेह के
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− | मोम से सम्बन्ध हैं गलने लगे ।
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− | कह रही है
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− | आज पीठें आदमी की
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− | घाव कब कितने कहाँ पर हैं लगे ।
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− | ज़ख़्म को जितना कुरेदा
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− | मलहमों ने
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− | दर्द से उतना गए हैं वे ठगे ।
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− | बेहिचक अब
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− | आस्तीनों में हमारी
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− | द्वेष के विष सर्प हैं पलने लगे ।
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13:07, 29 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण