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"खुदा को मनाने की/रमा द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर

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22:02, 30 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण


निगाहें हैं उनमें, कलाएँ भी उनमें,
दिल को लुभाने की अदाएँ भी उनमें ।

किया याद दिल ने जब बुलाने के खातिर,
बहाने बनाने के बहाने हैं उनमें।

कड़ी धूप में जब झुलसता था यह तन,
तपन को बुझाने की घटाएँ हैं उनमें।

तन्हा था यह दिल अब जी न सकेंगे,
हँसकर हँसाने की हँसिकाएँ हैं उनमें।

मौत से लड़ रही थी जब यह ज़िन्दगी,
खुदा को मनाने की सदाएँ हैं उनमें।