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"खुद को छुपा रहा है तू/रमा द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर
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22:25, 30 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
मेरे ही घर से मुझ को लेके जा रहा है तू
रखोगे ख्याल हरदम वादे भी कर रहा है तू।
जब तेरे घर में आकर हम हो गए तुम्हारे,
बदला मिज़ाज़ तेरा मुझको सता रहा है तू।
भूले वो अर्चनाएं , भूले वो सात फेरे .
प्रणय के इस अनुबंध को झूठा बता रहा है तू।
तेरे बदलते रूप का कारण समझ सके न हम,
गिरगिट सा रंग बदलकर खुद को छुपा रहा है तू।
अहसास को हमारे पलभर में रौंद डाला,
पत्थर बना के अब क्यों अरमां जगा रहा है तू।