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विकास इस दिशा में हुआ है;
अब बहुत आदमी
बे-सिर पैर का हुआ है

पीठ के नीचे धूल पड़ी है
पेट पर आसमान खड़ा है
हाथ के हल गिर पड़े हैं

रचनाकाल: ३१-०१-१९६९