भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छंद 29से 30)
 
(29)
गगन निहारि , किलकारी भारी सुनि,
हनुमान पहिचानि भए सानँद सचेत हैं।
 
बूड़त जहाज बच्यो पथिकसमाजु, मानो ,
आजु जाए जानि सब अंकमाल देत हैं।
 
‘जै जै जानकीस जै जै लखन-कपीस’ कहि,
कूदैं कपि कौतुकी नटत रेत-रेत हैं।
 
अंगदु मयंदु नलु नील बलसील महा
बालधी फिरावैं, मुख नाना गति लेत है।29।
 
(30)
आयो हनुमानु, प्रानहेतु अंकमाल देत,
लेत पगधूरि ऐक, चूमत लँगूल हैं।
 
एक बूझैं बार-बार सीय -समाचार , कहैं ,
पवनकुमारू, भो बिगतश्रम-सूल हैं।।
 
एक भूखे जानि, आगें आनैं कंद-मूल-फल,
एक पूजैं बाहु बलमूत तोरि फूल हैं।
 
एक कहैं ‘तुलसी’ सकल सिधि ताकें,
जाकें कृपा-पाथनाथ सीतानाथु सानुकूल हैं।30।
</poem>
Mover, Reupload, Uploader
7,916
edits