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रावण ओर मंदोदरी  
 
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कनकगिरिसृंग चढ़ि देखि मर्कटकटकु,
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बदत मंदोदरी परम भीता।
  
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सहसभुज-मत्तगजराज-रनकेसरी,
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परसुधर गर्बु जेहि देखि  बीता।।
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दास तुलसी समरसूर कोसलधनी,
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ख्याल हीं बालि बलसालि जीता।
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रे कंत! त्ृान गहि ‘सरन श्रीरामु’ कहि,
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अजहूँ एहि भाँतिल ै सौंपु सीता।17।
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रे नीचु! मरीचु बिचलाइ, हति ताड़का,
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भंजि सिवचापु सुखु सबहि दीन्हों ।
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सहज दसचारि खल सहित  खर-दूषनहिं,
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पैठै जमधाम, तैं तउ न चीन्ह्यों।।
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मैं जो कहौं, कंत! स्ुनु मंतु भगवंतसो,
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बिमुख ह्वै बालि फलु कौन लीन्ह्यो।
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बीस भुज, दस सीस खीस गए तबहिं जब,
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ईसके ईससों बैरू कीन्ह्यो।18।
  
 
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20:45, 2 मई 2011 का अवतरण

रावण ओर मंदोदरी
( छंद संख्या 17 से 18 )
(17)
कनकगिरिसृंग चढ़ि देखि मर्कटकटकु,
 बदत मंदोदरी परम भीता।

सहसभुज-मत्तगजराज-रनकेसरी,
 परसुधर गर्बु जेहि देखि बीता।।

दास तुलसी समरसूर कोसलधनी,
 ख्याल हीं बालि बलसालि जीता।

रे कंत! त्ृान गहि ‘सरन श्रीरामु’ कहि,
अजहूँ एहि भाँतिल ै सौंपु सीता।17।

(18)
रे नीचु! मरीचु बिचलाइ, हति ताड़का,
भंजि सिवचापु सुखु सबहि दीन्हों ।

सहज दसचारि खल सहित खर-दूषनहिं,
 पैठै जमधाम, तैं तउ न चीन्ह्यों।।

मैं जो कहौं, कंत! स्ुनु मंतु भगवंतसो,
 बिमुख ह्वै बालि फलु कौन लीन्ह्यो।

बीस भुज, दस सीस खीस गए तबहिं जब,
ईसके ईससों बैरू कीन्ह्यो।18।