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"राक्षस बानर संग्राम / तुलसीदास/ पृष्ठ 11" के अवतरणों में अंतर

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ओझरीकी झोरी काँधे, आँतनिकी सेल्ही बाँधे,
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मूँड़के कमंडल खपर किएँ कोरि कै।
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जोगिनि झुटंुग झुंड- झुंड बनीं तापसीं -सी,
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तीर-तीर बैठीं सो समर-सरि खोरि कै।।
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श्रोनित सों सानि-सानि गूदा खात सतुआ -से,
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प्रेत एक कपअत बहोरि घोरि-घोरि कै।
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‘तुलसी’ बैताल-भूत साथ लिए भूतनाथु,
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हेरि-हेरि हँसत हैं हाथ-हाथ जोरि कै।50।
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राम सरासन तें चले तीर रहे न सरीर, हड़ावरि फूटीं।
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रावन धीर न पीर गनी, लखि लै कर खप्पर जोगिनी जूटीं।।
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श्रोनित -छीट छटानि जटे तुलसी प्रभु सोहैं महा छबि छूटीं।
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मानो मरक्कत सैल बिसालमें फैलि चलीं  बर बीरबहूटीं।51।
  
 
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19:41, 4 मई 2011 के समय का अवतरण


राक्षस बानर संग्राम

( छंद संख्या (50) (51) )

 (50)

ओझरीकी झोरी काँधे, आँतनिकी सेल्ही बाँधे,
 मूँड़के कमंडल खपर किएँ कोरि कै।

जोगिनि झुटंुग झुंड- झुंड बनीं तापसीं -सी,
तीर-तीर बैठीं सो समर-सरि खोरि कै।।

श्रोनित सों सानि-सानि गूदा खात सतुआ -से,
 प्रेत एक कपअत बहोरि घोरि-घोरि कै।

 ‘तुलसी’ बैताल-भूत साथ लिए भूतनाथु,
 हेरि-हेरि हँसत हैं हाथ-हाथ जोरि कै।50।

(51)

राम सरासन तें चले तीर रहे न सरीर, हड़ावरि फूटीं।
रावन धीर न पीर गनी, लखि लै कर खप्पर जोगिनी जूटीं।।

 श्रोनित -छीट छटानि जटे तुलसी प्रभु सोहैं महा छबि छूटीं।
मानो मरक्कत सैल बिसालमें फैलि चलीं बर बीरबहूटीं।51।