भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"राम की कृपालुता / तुलसीदास/ पृष्ठ 5" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} Category:लम्बी रचना {{KKPageNavigation |पीछे=र…) |
|||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
{{KKPageNavigation | {{KKPageNavigation | ||
|पीछे=राम की कृपालुता / तुलसीदास / पृष्ठ 4 | |पीछे=राम की कृपालुता / तुलसीदास / पृष्ठ 4 | ||
− | |आगे= | + | |आगे=राम की कृपालुता / तुलसीदास / पृष्ठ 6 |
− | + | ||
|सारणी=राम की कृपालुता / तुलसीदास | |सारणी=राम की कृपालुता / तुलसीदास | ||
}} | }} | ||
पंक्ति 14: | पंक्ति 13: | ||
− | राम की कृपालुता | + | राम की कृपालुता-5 |
+ | |||
+ | |||
+ | '''( छंद संख्या 9, 10)''' | ||
+ | |||
+ | |||
+ | (9) | ||
+ | |||
+ | नरनारि उधारि सभा महुँ होत दियो पटु , सोचु हर्यो मनको। | ||
+ | प्रहलाद बिषाद-निवारन , बारन-तारन, मीत अकारनको।। | ||
+ | |||
+ | जो कहावत दीनदयाल सही, जेहि भारू सदा अपने पनको।। | ||
+ | ‘तुलसी’ तजि आन भरोस मजें , भगवानु भलो करिहैं जनको।9। | ||
+ | (10) | ||
− | + | रिषिनारि उधारि, कियो सठ केवटु मीतु पुनीत, सुकीर्ति लही। | |
+ | निजलाकु दियो सबरी-खगको, कपि थाप्यो , सो मालुम है सबही। । | ||
− | + | दससीस -बिरोध सभीत बिभीषनु भूपु कियो, जग लीक रही।। | |
+ | करूनानिधि को भजु , रे तुलसी! रघुनाथ अनाथ के नाथु सही।10। | ||
</poem> | </poem> |
09:05, 6 मई 2011 के समय का अवतरण
राम की कृपालुता-5
( छंद संख्या 9, 10)
(9)
नरनारि उधारि सभा महुँ होत दियो पटु , सोचु हर्यो मनको।
प्रहलाद बिषाद-निवारन , बारन-तारन, मीत अकारनको।।
जो कहावत दीनदयाल सही, जेहि भारू सदा अपने पनको।।
‘तुलसी’ तजि आन भरोस मजें , भगवानु भलो करिहैं जनको।9।
(10)
रिषिनारि उधारि, कियो सठ केवटु मीतु पुनीत, सुकीर्ति लही।
निजलाकु दियो सबरी-खगको, कपि थाप्यो , सो मालुम है सबही। ।
दससीस -बिरोध सभीत बिभीषनु भूपु कियो, जग लीक रही।।
करूनानिधि को भजु , रे तुलसी! रघुनाथ अनाथ के नाथु सही।10।