भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"गोरख बाणी / गोरखनाथ" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}
 
<poem>
 
<poem>
                नाथ बोले अमृत बाणी  
+
                  नाथ बोले अमृत बाणी  
 
                   वरिषेगी कंबली भीजैगा पाणी ।  
 
                   वरिषेगी कंबली भीजैगा पाणी ।  
 
गाडी पडरवा बांधिले शूंटा, चले  दमामा बाजिलै ऊंटा ।  
 
गाडी पडरवा बांधिले शूंटा, चले  दमामा बाजिलै ऊंटा ।  

21:53, 6 मई 2011 के समय का अवतरण

                  नाथ बोले अमृत बाणी
                  वरिषेगी कंबली भीजैगा पाणी ।
गाडी पडरवा बांधिले शूंटा, चले दमामा बाजिलै ऊंटा ।
कऊवा की डाली पीपल बासे, मूसा कै सबद बिलइया नासे ।
चलै बटावा थाकी बाट, सोवै डूकरिया ठोरे षाट ।
ढूकिले कूकर भूकिले चोर, काढै धणी पुकारे ढोर ।
उजड़ षेडा नगर मझारी, तलि गागर ऊपर पनिहारी ।
मगरी परि चूल्हा धून्धाई, पोवणहारा कों रोटी खाई ।
कामिनि जलै अंगीठी तापै, विच बैसंदर थरहर काँपे ।
एक जु रढीया रढ़ती आई, बहू बिवाई सासू जाई ।
नगरी को पाणी कूई आवै, उलटी चरचा गोरष गावै ।।