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"औरत / नरेश मेहन" के अवतरणों में अंतर
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13:22, 8 मई 2011 का अवतरण
सच मानिए
एक औरत
मेरे भीतर
हमेशा से रहती है।
कभी
बहुत प्यारी सी
कभी बहुत क्रूर
कभी
कपडों से लदी-फदी
कभी
एक दम निर्वस्त्र।
रहती है
मेरे भीतर हरदम।
कभी
होती है मां
कभी बेटी
कभी बहन
कभी पत्नी
कभी प्रेयसी
कितने
रूपों में
समायी रहती है वह।
हम सब
औरत से हैं
औरत के लिए
औरत के द्वारा
बगैर औरत
हमारा कोई
वजूद नहीं हैं।
इस धरती पर
औरत
दुनिया की सबसे
खूबसूरत नियामत हैं।
जो
मेरे ख्यालों में
हमेशा
बनी रहती हैं।
मैं
अंत तक
अपने भीतर
एक औरत को
बचाए रखता ह।