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+ | पीत बसन उपबीत कंठ मुकुता फल।। | ||
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+ | उर अनंग जल लोचन प्रेम पुलक तन।। | ||
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+ | लहेउ जनम फल आजु जनमि जग आइन्ह।56। | ||
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+ | बरू मिलौ सीतहि साँवरो हम हरषि मंगल गावहीं।। | ||
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+ | एक कहहिं कुँवरू किसोर कुलिस कठोर सिव धनु है महा। | ||
+ | किमि लेहिं बाल मराल मंदर नृपहिं अस काहुँ न कहा।7। | ||
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18:38, 14 मई 2011 का अवतरण
।।श्रीहरि।।
( जानकी -मंगल पृष्ठ 8)
रंगभूमि में राम-1
( छंद 49 से 56 तक)
राजत राज समाज जुगल रघुकुल मनि।
मनहुँ सरद उभय नखत धरनी धनि।49।
काकपच्छ सिर सुभग सरोरूह लोचन।
गौर स्याम सत कोटि काम मद मोचन।ं।
तिलकु ललित सर भ्रुकुटी काम कमानै।
श्रवन बिभूषन रूचिर देखि मन मानै।।
नासा चिबुक कपोल अधर रद सुंदर।
बसन सरद बिधु निंदक सहज मनोहर।।
उर बिसाल बृष कंध सुभग भुज अतिबल।
पीत बसन उपबीत कंठ मुकुता फल।।
कटि निषंग कर कमलन्हि धरें धनु-सायक।
सकल अंग मन मोहन जोहन लायक।।
राम-लखन-छबि देखि मगन भए पुरजन ।
उर अनंग जल लोचन प्रेम पुलक तन।।
नारि परस्पर कहहिं देखि दोउ भाइन्ह।
लहेउ जनम फल आजु जनमि जग आइन्ह।56।
(छंद 7)
जग जनमि लोयन लाहु पाए सकल सिवहि मनावहिं।
बरू मिलौ सीतहि साँवरो हम हरषि मंगल गावहीं।।
एक कहहिं कुँवरू किसोर कुलिस कठोर सिव धनु है महा।
किमि लेहिं बाल मराल मंदर नृपहिं अस काहुँ न कहा।7।
(इति पार्वती-मंगल पृष्ठ 8)