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|संग्रह=सच कहने के लिए / अनिल विभाकर
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जैसे सीधे-सीधे देख नहीं सकते अपना चेहरा
 
जान नहीं सकते
 
सीधे-सीधे अपने चेहरे के बारे में
 
जानने के लिए या तो देखना होगा आईना
या विश्वास करना पड़ेगा किसी के बताए पर
या विश्वास करना पड़ेगा किसी के बताये पर  वह जो बतायेगाबताएगाकितना सही होगा, कितना गलतग़लतयह जानने के लिए भी जरूरी ज़रूरी है कोई न कोई माध्यम 
यह माध्यम आईना भी हो सकता है
 
नदी का परदर्शी जल भी
 
नदी भी निर्भर है बादल पर
 
बादल भी निर्भर है सूरज पर
 
धूप, हवा, पानी सब कुछ निर्भर है
 
कहीं न कहीं किसी पर
 
बचा लीजिए अपनी नदी
 
उसका पारदर्शी जल
 
बोलने दीजिए आईने को सब कुछ सच-सच
 अपने आपको जानने के लिए जरूरी ज़रूरी है इन सबका होना।</poem>
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