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शिव स्तुति/ तुलसीदास

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विनय पत्रिका<table><tr><td bgcolor=margenta align=center><b>'''विनयावली''' के इस संस्करण में वर्तनी (Spellings) की त्रुटियाँ होने का अनुमान है। अत: इसे प्रूफ़ रीडिंग की आवश्यकता है। यदि आप कोई त्रुटि पाते हैं तो कृपया गीता प्रेस को मानक मान कर उसे संपादित कर दें। गीताप्रेस की साइट का पता है <nowiki>http://www.gitapress.org</nowiki></b></td></tr></table>
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|रचनाकार=तुलसीदास
|संग्रह=विनय पत्रिका / तुलसीदास / तुलसीदास
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'''शिव-स्तुति'''
''३''
को जाँचिये संभु तजि आन.
देहु काम-रिपु राम-चरन-रति, तुलसिदास कहँ क्रिपानिधान..४..
 
(2)
 
बावरो रावरो नाह भवानी।
दानि बडो दिन दये बिनु, बेद-बड़ाई भानी।1।
निज घरकी बरबात बिलाकहु, हौ तुम परम सयानी।
 
सिवकी दई संपदा देखत, श्री-सारदा सिहानी।।
 
जिनके भाल लिखी लिपि मेरी, सुखकी नहीं निसानी।
 
तिन रंकनकौ नाक सँवारत, हौं आयो नकबानी।।
दुख-दीनता दुखी इनके दुख, जाचकता अकुलानी।
 
यह अधिकार सौंपिये औरहिं, भाीख भली मैं जानी।।
 
प्रेम-प्रसंसा-बिनय-ब्यंगजुत, सुति बिधिकी बर बानी।।
 
तुलसी मुदित महेस मनहिं मन, जगतु-मातु मुसकानी।।
 
</poem>
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