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"गाँधी जी / हरे प्रकाश उपाध्याय" के अवतरणों में अंतर
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उठो | उठो | ||
और मेरे बस्ते से बाहर आओ | और मेरे बस्ते से बाहर आओ | ||
कि तुम्हे ढोते-ढोते | कि तुम्हे ढोते-ढोते | ||
दुख रही है मेरी पीठ | दुख रही है मेरी पीठ | ||
− | कन्धे छिल | + | कन्धे छिल गए हैं बापू |
तुम्हारे उपदेश काम नहीं आते | तुम्हारे उपदेश काम नहीं आते | ||
जीवन में | जीवन में | ||
− | तुम्हारे | + | तुम्हारे बताए रास्ते पर चलकर |
मैं कहीं और जा पहुँच जाता हूँ | मैं कहीं और जा पहुँच जाता हूँ | ||
मंज़िल नहीं मिलती | मंज़िल नहीं मिलती | ||
दोस्त दुश्मन बनकर | दोस्त दुश्मन बनकर | ||
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बापू! | बापू! | ||
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मगर इसे चन्द सफ़ेदपोश, दलालों | मगर इसे चन्द सफ़ेदपोश, दलालों | ||
हाकिम-हुक्मरानों ने फिर जकड़ दिया है | हाकिम-हुक्मरानों ने फिर जकड़ दिया है | ||
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हम नालायक हो रहे हैं | हम नालायक हो रहे हैं | ||
स्कूल के ब्लैकबोर्ड पर | स्कूल के ब्लैकबोर्ड पर | ||
उग नहीं रहा है सफ़ेद खड़िया | उग नहीं रहा है सफ़ेद खड़िया | ||
मेरे बस्ते से बाहर आओ बापू | मेरे बस्ते से बाहर आओ बापू | ||
− | हमारी दशा पर तरस खाओ बापू! | + | हमारी दशा पर तरस खाओ बापू ! |
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09:06, 18 मई 2011 के समय का अवतरण
मेरे इतिहास की क़िताब में
सोए पड़े गाँधी जी !
उठो
और मेरे बस्ते से बाहर आओ
कि तुम्हे ढोते-ढोते
दुख रही है मेरी पीठ
कन्धे छिल गए हैं बापू
तुम्हारे उपदेश काम नहीं आते
जीवन में
तुम्हारे बताए रास्ते पर चलकर
मैं कहीं और जा पहुँच जाता हूँ
मंज़िल नहीं मिलती
दोस्त दुश्मन बनकर
लूट लेते हैं रास्ते में
बापू!
तुमने आज़ादी माँगी थी
बनिहार चरवाह
किसान मजूर के लिए
मगर इसे चन्द सफ़ेदपोश, दलालों
हाकिम-हुक्मरानों ने फिर जकड़ दिया है
बेड़ियों में
हम नालायक हो रहे हैं
स्कूल के ब्लैकबोर्ड पर
उग नहीं रहा है सफ़ेद खड़िया
मेरे बस्ते से बाहर आओ बापू
हमारी दशा पर तरस खाओ बापू !