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"ख़ुद से ख़िलाफ़त / राजेश चड्ढ़ा" के अवतरणों में अंतर
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बेख़याली में, | बेख़याली में, | ||
किसी अपने को- | किसी अपने को- |
17:39, 19 मई 2011 के समय का अवतरण
यूं ही-बस
बेख़याली में,
किसी अपने को-
सच्ची बात
कह कर,
जब पराया
कर लिया मैंने,
उसी दिन से
ख़िलाफ़त-
ख़ुद की
करता हूं।
मैं क़िस्से
रोज़
गढ़ता हूं।
मौहब्बत
लिख के,
चेहरे पर-
मौहब्बत
को ही
पढ़ता हूं