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लोग मशगूल हैं | लोग मशगूल हैं | ||
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क्या पता किस क्षण | क्या पता किस क्षण | ||
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हमें हमारी राह दिखाए! | हमें हमारी राह दिखाए! | ||
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21:53, 19 मई 2011 के समय का अवतरण
उड़ रही हैं हर तरफ़
सूचनाओं की चिन्दियाँ
जिसने जितनी कतरनें
जमा कर ली हैं
उतना ताक़तवर बन बैठा है।
धरती के दुखों-क्लेशों पर
सूचनाच्छादित आकाश
बरसा रहा है सूचनाएँ !
लोग मशगूल हैं
दूसरी चीज़ों, दूसरे लोगों के बारे में
जानकारियाँ जमा करने में,
अपने से बेख़बर
वे हो रहे हैं बाख़बर!
इस दौर में
जबकि दुनिया एक हो रही है
सब दिशाएँ मिल रही हैं
सब भेद-अभेद मिट रहे हैं
अच्छा रहेगा
कि अपना नाम-पता
तकिए के नीचे रखकर सोया जाए
क्या पता किस क्षण
ख़ुद की याद हो आए
और कोई दूसरा
हमें हमारी राह दिखाए!