"मेरे देश के लाल / बालकवि बैरागी" के अवतरणों में अंतर
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− | पराधीनता को | + | पराधीनता को जहाँ समझा श्राप महान |
− | कण-कण के खातिर | + | कण-कण के खातिर जहाँ हुए कोटि बलिदान |
मरना पर झुकना नहीं, मिला जिसे वरदान | मरना पर झुकना नहीं, मिला जिसे वरदान | ||
सुनो-सुनो उस देश की शूर-वीर संतान | सुनो-सुनो उस देश की शूर-वीर संतान | ||
− | + | ::आन-मान अभिमान की धरती पैदा करती दीवाने | |
− | आन-मान अभिमान की धरती पैदा करती दीवाने | + | ::मेरे देश के लाल हठीले शीश झुकाना क्या जाने। |
− | मेरे देश के लाल हठीले शीश झुकाना क्या जाने। | + | दूध-दही की नदियां जिसके आँचल में कलकल करतीं |
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− | दूध-दही की नदियां जिसके | + | |
हीरा, पन्ना, माणिक से है पटी जहां की शुभ धरती | हीरा, पन्ना, माणिक से है पटी जहां की शुभ धरती | ||
हल की नोंकें जिस धरती की मोती से मांगें भरतीं | हल की नोंकें जिस धरती की मोती से मांगें भरतीं | ||
− | उच्च हिमालय के शिखरों पर जिसकी | + | उच्च हिमालय के शिखरों पर जिसकी ऊँची ध्वजा फहरती |
− | + | ::रखवाले ऐसी धरती के हाथ बढ़ाना क्या जाने | |
− | रखवाले ऐसी धरती के हाथ | + | ::मेरे देश के लाल हठीले शीश झुकाना क्या जाने। |
− | मेरे देश के लाल हठीले शीश झुकाना क्या जाने। | + | आज़ादी अधिकार सभी का जहाँ बोलते सेनानी |
− | + | विश्व शांति के गीत सुनाती जहाँ चुनरिया ये धानी | |
− | + | मेघ साँवले बरसाते हैं जहाँ अहिंसा का पानी | |
− | विश्व शांति के गीत सुनाती | + | |
− | मेघ | + | |
अपनी मांगें पोंछ डालती हंसते-हंसते कल्याणी | अपनी मांगें पोंछ डालती हंसते-हंसते कल्याणी | ||
− | + | ::ऐसी भारत माँ के बेटे मान गँवाना क्या जाने | |
− | ऐसी भारत | + | ::मेरे देश के लाल हठीले शीश झुकाना क्या जाने। |
− | मेरे देश के लाल हठीले शीश झुकाना क्या जाने। | + | जहाँ पढाया जाता केवल माँ की ख़ातिर मर जाना |
− | + | जहाँ सिखाया जाता केवल करके अपना वचन निभाना | |
− | + | जियो शान से मरो शान से जहाँ का है कौमी गाना | |
− | जियो शान से मरो शान से | + | बच्चा-बच्चा पहने रहता जहाँ शहीदों का बाना |
− | बच्चा-बच्चा पहने रहता | + | ::उस धरती के अमर सिपाही पीठ दिखाना क्या जाने |
− | उस धरती के अमर सिपाही पीठ दिखाना क्या जाने | + | ::मेरे देश के लाल हठीले शीश झुकाना क्या जाने। |
− | मेरे देश के लाल हठीले शीश झुकाना क्या जाने। | + | </poem> |
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01:27, 21 मई 2011 के समय का अवतरण
पराधीनता को जहाँ समझा श्राप महान
कण-कण के खातिर जहाँ हुए कोटि बलिदान
मरना पर झुकना नहीं, मिला जिसे वरदान
सुनो-सुनो उस देश की शूर-वीर संतान
आन-मान अभिमान की धरती पैदा करती दीवाने
मेरे देश के लाल हठीले शीश झुकाना क्या जाने।
दूध-दही की नदियां जिसके आँचल में कलकल करतीं
हीरा, पन्ना, माणिक से है पटी जहां की शुभ धरती
हल की नोंकें जिस धरती की मोती से मांगें भरतीं
उच्च हिमालय के शिखरों पर जिसकी ऊँची ध्वजा फहरती
रखवाले ऐसी धरती के हाथ बढ़ाना क्या जाने
मेरे देश के लाल हठीले शीश झुकाना क्या जाने।
आज़ादी अधिकार सभी का जहाँ बोलते सेनानी
विश्व शांति के गीत सुनाती जहाँ चुनरिया ये धानी
मेघ साँवले बरसाते हैं जहाँ अहिंसा का पानी
अपनी मांगें पोंछ डालती हंसते-हंसते कल्याणी
ऐसी भारत माँ के बेटे मान गँवाना क्या जाने
मेरे देश के लाल हठीले शीश झुकाना क्या जाने।
जहाँ पढाया जाता केवल माँ की ख़ातिर मर जाना
जहाँ सिखाया जाता केवल करके अपना वचन निभाना
जियो शान से मरो शान से जहाँ का है कौमी गाना
बच्चा-बच्चा पहने रहता जहाँ शहीदों का बाना
उस धरती के अमर सिपाही पीठ दिखाना क्या जाने
मेरे देश के लाल हठीले शीश झुकाना क्या जाने।