"अँधेरे में शब्द / ओमप्रकाश वाल्मीकि" के अवतरणों में अंतर
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समय के चक्रवात से भयभीत होकर | समय के चक्रवात से भयभीत होकर |
02:55, 21 मई 2011 के समय का अवतरण
रात गहरी और काली है
अकालग्रस्त त्रासदी जैसी
जहाँ हज़ारों शब्द दफ़न हैं
इतने गहरे
कि उनकी सिसकियाँ भी
सुनाई नहीं देती
समय के चक्रवात से भयभीत होकर
मृत शब्द को पुनर्जीवित करने की
तमाम कोशिशें
हो जाएँगी नाकाम
जिसे नहीं पहचान पाएगी
समय की आवाज़ भी
ऊँची आवाज़ में मुनादी करने वाले भी
अब चुप हो गए हैं
’गोद में बच्चा
गाँव में ढिंढोरा’
मुहावरा भी अब
अर्थ खो चुका है
पुरानी पड़ गई है
ढोल की धमक भी
पर्वत कन्दराओं की भीत पर
उकेरे शब्द भी
अब सिर्फ़
रेखाएँ भर हैं
जिन्हें चिन्हित करना
तुम्हारे लिए वैसा ही है
जैसा ‘काला अक्षर भैंस बराबर’
भयभीत शब्द ने मरने से पहले
किया था आर्तनाद
जिसे न तुम सुन सके
न तुम्हारा व्याकरण ही
कविता में अब कोई
ऐसा छन्द नहीं है
जो बयान कर सके
दहकते शब्द की तपिश
बस, कुछ उच्छवास हैं
जो शब्दों के अँधेरों से
निकल कर आए हैं
शून्यता पाटने के लिए !
3 मई, 2011