भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"नारियल की देह / उमेश चौहान" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उमेश चौहान }} {{KKCatKavita}} <poem> सुघड़ चिकने पय भरे फल, व…) |
|||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=उमेश चौहान | |रचनाकार=उमेश चौहान | ||
+ | |संग्रह=गाँठ में लूँ बाँध थोड़ी चाँदनी / उमेश चौहान | ||
}} | }} | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
+ | '''नारियल की देह''' | ||
सुघड़ चिकने पय भरे फल, | सुघड़ चिकने पय भरे फल, | ||
वक्ष पर ताने खड़ा, | वक्ष पर ताने खड़ा, |
11:26, 22 मई 2011 के समय का अवतरण
नारियल की देह
सुघड़ चिकने पय भरे फल,
वक्ष पर ताने खड़ा,
नवयौवना-सा,
झूमता है नारियल तरु,
मेघ से रिमझिम बरसते,
नीर का संगीत सुनता,
गुनगुनाता साथ में कुछ,
थरथराते पात भीगे,
शीश पर लटके लटों से,
भर रही आवेश उनमें,
छुवन बूंदों की निरन्तर,
पवन का झोंका अचानक,
खींच लाता उसे मुझ तक,
खुली खिड़की की डगर,
भींच कर के स्निग्धता उसकी समूची,
बाहुओं के पाश में निज,
मैं चरम पर हूँ,
परम उत्तेजना के,
निरत इस आनन्द में ही,
उड़ गया कब संग पवन के,
यह नहीं मालूम मुझको,
झूमता अब मैं वहाँ,
उस तरु-शिखर पर,
भीगता लिपटा हुआ,
उस नारियल की देह से ।