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|रचनाकार=कुमार रवींद्र |संग्रह=और...हमने सन्धियाँ कीं / कुमार रवींद्र
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शपथ तुम्हारी
हाँ, नदिया- पहाड़ जंगल
है शपथ तुम्हारी!
मरने नहीं उसे देंगे हम
होने कभी नहीं
देंगे हम
अपने पोखर का जल खारी!
संग तुम्हारे हमने पूजे
तुलसीचौरे की
बटिया की
हमने है आरती उतारी!
नागफनी के काँटे बीने
सारी दुनिया के
नाकों पर
गई हमारी विरुद उचारी!
</poem>