भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अहसासों का चौरा दरका / श्यामनारायण मिश्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
मनोज कुमार (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
| पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
{{KKCatNavgeet}} | {{KKCatNavgeet}} | ||
<poem> | <poem> | ||
| − | + | कौन करे दिये-बत्तियाँ | |
| − | + | ||
| − | + | ||
| − | कौन करे दिये- | + | |
तुमने जो लिखी नहीं | तुमने जो लिखी नहीं | ||
मैंने जो पढ़ी नहीं | मैंने जो पढ़ी नहीं | ||
| − | + | आँखों में तैर रहीं चिट्ठियाँ | |
छाती से | छाती से | ||
सूरज का दग्ध-लाल गोला लुढ़काकर, | सूरज का दग्ध-लाल गोला लुढ़काकर, | ||
| − | अभी अभी बैठा हूं | + | अभी-अभी बैठा हूं |
| − | + | आँखों के दरवाज़े | |
| − | पलकें | + | पलकें उढ़काकर । |
भीतर ही भीतर | भीतर ही भीतर | ||
लगता है कोई | लगता है कोई | ||
| − | खोद रहा | + | खोद रहा खत्तियाँ । |
सुबह-शाम | सुबह-शाम | ||
विष की थैली उलटाकर | विष की थैली उलटाकर | ||
| − | समय- | + | समय-साँप सरका । |
नेह-छोह से तुमने | नेह-छोह से तुमने | ||
लीपा था पोता था, | लीपा था पोता था, | ||
| − | भीतर अहसासों का चौरा | + | भीतर अहसासों का चौरा दरका । |
खेल हैं, खिलौने हैं, | खेल हैं, खिलौने हैं, | ||
| − | किसके संग | + | किसके संग करूँ कहो |
| − | फिर सग्गे- | + | फिर सग्गे-मित्तियाँ । |
</poem> | </poem> | ||
20:49, 23 मई 2011 का अवतरण
कौन करे दिये-बत्तियाँ
तुमने जो लिखी नहीं
मैंने जो पढ़ी नहीं
आँखों में तैर रहीं चिट्ठियाँ
छाती से
सूरज का दग्ध-लाल गोला लुढ़काकर,
अभी-अभी बैठा हूं
आँखों के दरवाज़े
पलकें उढ़काकर ।
भीतर ही भीतर
लगता है कोई
खोद रहा खत्तियाँ ।
सुबह-शाम
विष की थैली उलटाकर
समय-साँप सरका ।
नेह-छोह से तुमने
लीपा था पोता था,
भीतर अहसासों का चौरा दरका ।
खेल हैं, खिलौने हैं,
किसके संग करूँ कहो
फिर सग्गे-मित्तियाँ ।
