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"नदी / राकेश प्रियदर्शी" के अवतरणों में अंतर
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वह नदी की आंखों में डूबकर | वह नदी की आंखों में डूबकर | ||
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सागर की गहराई नापना चाहता था | सागर की गहराई नापना चाहता था | ||
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और आसमान की अतल ऊंचाइयों में | और आसमान की अतल ऊंचाइयों में | ||
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कल्पना के परों से उड़ान भरना चाहता था, | कल्पना के परों से उड़ान भरना चाहता था, | ||
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पर वह नदी तो कब से सूखी पड़ी थी, | पर वह नदी तो कब से सूखी पड़ी थी, | ||
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बालू, पत्थर और रेत से भरी थी | बालू, पत्थर और रेत से भरी थी | ||
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वह कैसी नदी थी जिसमें स्वच्छ जल न था, | वह कैसी नदी थी जिसमें स्वच्छ जल न था, | ||
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न धाराएं थीं, न प्रवाह दिखता था, | न धाराएं थीं, न प्रवाह दिखता था, | ||
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वहां सिर्फ आग ही आग थी | वहां सिर्फ आग ही आग थी | ||
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नदी थी तो दुःख का विस्तार था, | नदी थी तो दुःख का विस्तार था, | ||
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वहाँ पानी नहीं, हर तरफ हाहाकार था | वहाँ पानी नहीं, हर तरफ हाहाकार था | ||
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नदी की आँखों में आंसुओं की धारा थी, | नदी की आँखों में आंसुओं की धारा थी, | ||
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उसकी आंखों में भी आंसुओं की धारा थी, | उसकी आंखों में भी आंसुओं की धारा थी, | ||
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एक धारा का दूसरे से इस तरह नाता था | एक धारा का दूसरे से इस तरह नाता था | ||
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कैसे कह दूं कि वहां जीवन न था</poem> | कैसे कह दूं कि वहां जीवन न था</poem> |
20:02, 24 मई 2011 के समय का अवतरण
(1)
वह नदी की आंखों में डूबकर
सागर की गहराई नापना चाहता था
और आसमान की अतल ऊंचाइयों में
कल्पना के परों से उड़ान भरना चाहता था,
पर वह नदी तो कब से सूखी पड़ी थी,
बालू, पत्थर और रेत से भरी थी
(2)
वह कैसी नदी थी जिसमें स्वच्छ जल न था,
न धाराएं थीं, न प्रवाह दिखता था,
वहां सिर्फ आग ही आग थी
(3)
नदी थी तो दुःख का विस्तार था,
वहाँ पानी नहीं, हर तरफ हाहाकार था
(4)
नदी की आँखों में आंसुओं की धारा थी,
उसकी आंखों में भी आंसुओं की धारा थी,
एक धारा का दूसरे से इस तरह नाता था
कैसे कह दूं कि वहां जीवन न था