भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"लौटना है हमें / योगेंद्र कृष्णा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=योगेंद्र कृष्णा |संग्रह= }} <poem> लौटना है हमें अपनी…)
 
 
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
  
 
लौटना है हमें अपनी जड़ों में
 
लौटना है हमें अपनी जड़ों में
 
 
जैसे लौटती है कोई चिड़िया
 
जैसे लौटती है कोई चिड़िया
 
 
अपने घोंसले में
 
अपने घोंसले में
 
 
दिन भर की परवाज़ से
 
दिन भर की परवाज़ से
 
  
 
जैसे लौटता है अंततः  
 
जैसे लौटता है अंततः  
 
 
चूल्हे पर खौलता हुआ पानी
 
चूल्हे पर खौलता हुआ पानी
 
 
उत्तप्त उफनता हुआ सागर
 
उत्तप्त उफनता हुआ सागर
 
 
अपनी नैसर्गिक प्रशांति में
 
अपनी नैसर्गिक प्रशांति में
 
  
 
जैसे लौटता है  
 
जैसे लौटता है  
 
 
ऊंचे पहाड़ों से झरता हुआ पानी
 
ऊंचे पहाड़ों से झरता हुआ पानी
 
 
आकाश में उमड़ता घुमड़ता हुआ  
 
आकाश में उमड़ता घुमड़ता हुआ  
 
 
स्याह पानीदार बादल
 
स्याह पानीदार बादल
 
 
धरती की आगोश में
 
धरती की आगोश में
 
+
-
------
+
 
+
 
चिड़ियों के घोंसले
 
चिड़ियों के घोंसले
 
 
आज भी सुरक्षित हैं  
 
आज भी सुरक्षित हैं  
 
 
अपने आदिम स्वरूप में
 
अपने आदिम स्वरूप में
 
उनके परवाज़ की खुशियां
 
 
 
क्योंकि वे आज भी
 
क्योंकि वे आज भी
 
 
पेड़ जंगल नदी पहाड़  
 
पेड़ जंगल नदी पहाड़  
 
 
और तिनकों के ही गीत गाती हैं
 
और तिनकों के ही गीत गाती हैं
 
  
 
नहीं बनातीं अब
 
नहीं बनातीं अब
 
 
घर की गोरैया भी
 
घर की गोरैया भी
 
 
हमारे घरों में अपने घोंसले
 
हमारे घरों में अपने घोंसले
 
 
क्योंकि हम नहीं लेते  
 
क्योंकि हम नहीं लेते  
 
 
उनकी छोटी-छोटी  
 
उनकी छोटी-छोटी  
 
+
खुशियों में कोई हिस्सा
खुशियों कोई हिस्सा
+
 
+
  
 
अपने घरों में हम  
 
अपने घरों में हम  
 
 
नहीं जीते उनकी फ़ितरत  
 
नहीं जीते उनकी फ़ितरत  
 
 
नहीं गाते उनके गीत उनकी भाषा
 
नहीं गाते उनके गीत उनकी भाषा
 
  
 
और क्योंकि पता है उन्हें
 
और क्योंकि पता है उन्हें
 
 
हमारे घरों के भीतर  
 
हमारे घरों के भीतर  
 
 
दीवारों के बिना भी
 
दीवारों के बिना भी
 
 
बसते हैं कई कई और भी घर
 
बसते हैं कई कई और भी घर
 
 
एक दूसरे से पूरी तरह बेखबर
 
एक दूसरे से पूरी तरह बेखबर
 
+
-
---------
+
 
+
 
+
 
ऐसे में…
 
ऐसे में…
 
 
हमें तो डरना चाहिए
 
हमें तो डरना चाहिए
 
 
फसलों की जगह  
 
फसलों की जगह  
 
 
खेतों में लहलहाती इमारतों से
 
खेतों में लहलहाती इमारतों से
 
 
आकाश और समुद्र को चीरते
 
आकाश और समुद्र को चीरते
 
 
जहाजों के भयावह शोर से
 
जहाजों के भयावह शोर से
 
 
मंदिर मस्जिद गिरिजाघरों
 
मंदिर मस्जिद गिरिजाघरों
 
 
में सदियों से जारी  
 
में सदियों से जारी  
 
 
निर्वीर्य मन्नतों दुआओं से जन्मे
 
निर्वीर्य मन्नतों दुआओं से जन्मे
 
 
मुर्दनी सन्नाटों से
 
मुर्दनी सन्नाटों से
 
  
 
सड़कों पर हमारे साथ  
 
सड़कों पर हमारे साथ  
 
 
कदमताल करते खंभों
 
कदमताल करते खंभों
 
 
और बिजली के तारों से
 
और बिजली के तारों से
 
 
जगमग रौशनी और  
 
जगमग रौशनी और  
 
 
फलते फूलते दुनिया के बाज़ारों से
 
फलते फूलते दुनिया के बाज़ारों से
 
  
 
हां, मुझे डरना चाहिए
 
हां, मुझे डरना चाहिए
 
 
स्वयं अपने आप से
 
स्वयं अपने आप से
 
 
जैसे डरती है मुझसे
 
जैसे डरती है मुझसे
 
 
अचानक सामने पड़ जाने पर
 
अचानक सामने पड़ जाने पर
 
 
मासूम-सी कोई चिड़िया
 
मासूम-सी कोई चिड़िया

21:23, 24 मई 2011 के समय का अवतरण


लौटना है हमें अपनी जड़ों में
जैसे लौटती है कोई चिड़िया
अपने घोंसले में
दिन भर की परवाज़ से

जैसे लौटता है अंततः
चूल्हे पर खौलता हुआ पानी
उत्तप्त उफनता हुआ सागर
अपनी नैसर्गिक प्रशांति में

जैसे लौटता है
ऊंचे पहाड़ों से झरता हुआ पानी
आकाश में उमड़ता घुमड़ता हुआ
स्याह पानीदार बादल
धरती की आगोश में
-
चिड़ियों के घोंसले
आज भी सुरक्षित हैं
अपने आदिम स्वरूप में
क्योंकि वे आज भी
पेड़ जंगल नदी पहाड़
और तिनकों के ही गीत गाती हैं

नहीं बनातीं अब
घर की गोरैया भी
हमारे घरों में अपने घोंसले
क्योंकि हम नहीं लेते
उनकी छोटी-छोटी
खुशियों में कोई हिस्सा

अपने घरों में हम
नहीं जीते उनकी फ़ितरत
नहीं गाते उनके गीत उनकी भाषा

और क्योंकि पता है उन्हें
हमारे घरों के भीतर
दीवारों के बिना भी
बसते हैं कई कई और भी घर
एक दूसरे से पूरी तरह बेखबर
-
ऐसे में…
हमें तो डरना चाहिए
फसलों की जगह
खेतों में लहलहाती इमारतों से
आकाश और समुद्र को चीरते
जहाजों के भयावह शोर से
मंदिर मस्जिद गिरिजाघरों
में सदियों से जारी
निर्वीर्य मन्नतों दुआओं से जन्मे
मुर्दनी सन्नाटों से

सड़कों पर हमारे साथ
कदमताल करते खंभों
और बिजली के तारों से
जगमग रौशनी और
फलते फूलते दुनिया के बाज़ारों से

हां, मुझे डरना चाहिए
स्वयं अपने आप से
जैसे डरती है मुझसे
अचानक सामने पड़ जाने पर
मासूम-सी कोई चिड़िया