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"स्टोर रूम / त्रिपुरारि कुमार शर्मा" के अवतरणों में अंतर

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अपने कमरे में इस तरह पड़ा होता हूँ
 
अपने कमरे में इस तरह पड़ा होता हूँ
 
 
‘स्टोर रूम में जैसे कोई सामान रखा हो’
 
‘स्टोर रूम में जैसे कोई सामान रखा हो’
 
 
मुझको घूरते रहते हैं सारे फर्नीचर
 
मुझको घूरते रहते हैं सारे फर्नीचर
 
 
उनकी नज़रें काटती हैं सापों की तरह
 
उनकी नज़रें काटती हैं सापों की तरह
 
 
किताबें चुपचाप सोचती हैं मुझे
 
किताबें चुपचाप सोचती हैं मुझे
 
 
आईने में कोई शक्ल उभरता ही नहीं
 
आईने में कोई शक्ल उभरता ही नहीं
 
 
दरो-दीवार के चेहरे उदास लगते हैं
 
दरो-दीवार के चेहरे उदास लगते हैं
 
 
नाराज़-सी लगती है छत भी कुछ-कुछ
 
नाराज़-सी लगती है छत भी कुछ-कुछ
 
 
कभी-कभी यूँ माज़ी की खुशबू गुंजती है
 
कभी-कभी यूँ माज़ी की खुशबू गुंजती है
 
 
कि भीग जाता है आते हुए लम्हों का बदन
 
कि भीग जाता है आते हुए लम्हों का बदन
 
 
कर नहीं पाता हूँ ये फैसला अक्सर
 
कर नहीं पाता हूँ ये फैसला अक्सर
 
 
‘मैं स्टोर रूम में हूँ’ या ‘स्टोर रूम मुझमें है’
 
‘मैं स्टोर रूम में हूँ’ या ‘स्टोर रूम मुझमें है’
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01:21, 25 मई 2011 के समय का अवतरण

अपने कमरे में इस तरह पड़ा होता हूँ
‘स्टोर रूम में जैसे कोई सामान रखा हो’
मुझको घूरते रहते हैं सारे फर्नीचर
उनकी नज़रें काटती हैं सापों की तरह
किताबें चुपचाप सोचती हैं मुझे
आईने में कोई शक्ल उभरता ही नहीं
दरो-दीवार के चेहरे उदास लगते हैं
नाराज़-सी लगती है छत भी कुछ-कुछ
कभी-कभी यूँ माज़ी की खुशबू गुंजती है
कि भीग जाता है आते हुए लम्हों का बदन
कर नहीं पाता हूँ ये फैसला अक्सर
‘मैं स्टोर रूम में हूँ’ या ‘स्टोर रूम मुझमें है’