"जीवन का अर्थ / त्रिपुरारि कुमार शर्मा" के अवतरणों में अंतर
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
<Poem> | <Poem> | ||
‘जीवन’ | ‘जीवन’ | ||
− | |||
जिसका अर्थ | जिसका अर्थ | ||
− | |||
मैं जानता नहीं | मैं जानता नहीं | ||
− | + | मुझे जीना चाहता है। | |
− | मुझे जीना चाहता | + | |
− | + | ||
‘मृत्यु’ | ‘मृत्यु’ | ||
− | |||
जिसका अर्थ | जिसका अर्थ | ||
− | |||
मैंने बाबूजी से पूछा था | मैंने बाबूजी से पूछा था | ||
− | |||
जाने कहाँ चले गये | जाने कहाँ चले गये | ||
− | |||
बिना उत्तर दिये | बिना उत्तर दिये | ||
− | |||
शायद खेतों की ओर | शायद खेतों की ओर | ||
− | |||
नहीं, स्कूल गये होंगे | नहीं, स्कूल गये होंगे | ||
− | |||
आज सात साल, तीन महीना | आज सात साल, तीन महीना | ||
− | |||
और बीसवाँ दिन भी बीत गया | और बीसवाँ दिन भी बीत गया | ||
− | |||
लौट कर नहीं आये | लौट कर नहीं आये | ||
− | |||
क्या मृत्यु इसी को कहते हैं ? | क्या मृत्यु इसी को कहते हैं ? | ||
− | |||
हाँ, उत्तर अगर हाँ है | हाँ, उत्तर अगर हाँ है | ||
− | + | तो मैं जीना चाहूँगा इसे। | |
− | तो मैं जीना चाहूँगा | + | |
− | + | ||
क्योंकि – | क्योंकि – | ||
− | |||
माँ ने आकाश से रस्सी बाँध दी है | माँ ने आकाश से रस्सी बाँध दी है | ||
− | |||
आ गया बसंत | आ गया बसंत | ||
− | |||
बसंत आ गया | बसंत आ गया | ||
− | |||
सामने हवाओं का झूला है | सामने हवाओं का झूला है | ||
− | |||
गाँव में सज रहा मेला है | गाँव में सज रहा मेला है | ||
− | |||
पीली बर्फ जम गई खेतों पर | पीली बर्फ जम गई खेतों पर | ||
− | |||
हरी आग लग गई जंगल में | हरी आग लग गई जंगल में | ||
− | |||
दृश्यों में सिमट गई दृष्टि | दृश्यों में सिमट गई दृष्टि | ||
− | |||
समय थक गया | समय थक गया | ||
− | |||
नब्ज़ें रूक गई रफ़्तार की | नब्ज़ें रूक गई रफ़्तार की | ||
− | |||
लेकिन मैं बढ़ता रहा | लेकिन मैं बढ़ता रहा | ||
− | |||
आँधियाँ विश्राम करने लगीं | आँधियाँ विश्राम करने लगीं | ||
− | |||
किनारे पर पहुचने से पहले | किनारे पर पहुचने से पहले | ||
− | |||
नाव ऊंघने लगी | नाव ऊंघने लगी | ||
− | |||
धरती ने ठीक से पाँव छुए भी नहीं | धरती ने ठीक से पाँव छुए भी नहीं | ||
− | + | और चलने लगी धरती। | |
− | और चलने लगी | + | |
− | + | ||
परिवर्तन, | परिवर्तन, | ||
− | |||
कुछ तो परिवर्तन हुआ | कुछ तो परिवर्तन हुआ | ||
− | |||
माँ ने भीगी हथेलियों से | माँ ने भीगी हथेलियों से | ||
− | |||
स्पर्श किया गालों को, जगा दिया | स्पर्श किया गालों को, जगा दिया | ||
− | |||
फिर दिखाया मुझे मेरा ‘लक्ष्य’ | फिर दिखाया मुझे मेरा ‘लक्ष्य’ | ||
− | |||
कल रात स्वप्न में | कल रात स्वप्न में | ||
− | |||
तोड़ कर मुट्ठी भर आकाश | तोड़ कर मुट्ठी भर आकाश | ||
− | |||
और कुछ अधखिले सितारे | और कुछ अधखिले सितारे | ||
− | |||
जेब में रख गये बाबूजी | जेब में रख गये बाबूजी | ||
− | |||
वो आकाश वो सितारे | वो आकाश वो सितारे | ||
− | |||
अब भी हैं मेरी जेब में | अब भी हैं मेरी जेब में | ||
− | |||
अब भी है याद ‘लक्ष्य’ | अब भी है याद ‘लक्ष्य’ | ||
− | + | झरना चढ़ने लगा पहाड़ पर। | |
− | झरना चढ़ने लगा पहाड़ | + | |
परिवर्तन, | परिवर्तन, | ||
− | |||
कुछ तो परिवर्तन हुआ | कुछ तो परिवर्तन हुआ | ||
− | |||
जीवन सोचता है जिसे | जीवन सोचता है जिसे | ||
− | |||
क्या वही मैं हूँ | क्या वही मैं हूँ | ||
− | |||
जीवन चाहता है जिसे | जीवन चाहता है जिसे | ||
− | |||
क्या वही मैं हूँ | क्या वही मैं हूँ | ||
− | |||
जीवन माँगता है जिसे | जीवन माँगता है जिसे | ||
− | |||
क्या वही मैं हूँ | क्या वही मैं हूँ | ||
− | |||
मैं भी सोचने लगा हूँ जीवन को | मैं भी सोचने लगा हूँ जीवन को | ||
− | |||
मैं भी चाहने लगा हूँ जीवन को | मैं भी चाहने लगा हूँ जीवन को | ||
− | + | मैं भी माँगने लगा हूँ जीवन को। | |
− | मैं भी माँगने लगा हूँ जीवन | + | |
− | + | ||
‘जीवन’ | ‘जीवन’ | ||
− | |||
जिसका अर्थ | जिसका अर्थ | ||
− | |||
मैं जानता नहीं | मैं जानता नहीं | ||
− | + | मुझे जीना चाहता है। | |
− | मुझे जीना चाहता | + | |
<Poem> | <Poem> |
01:37, 25 मई 2011 के समय का अवतरण
‘जीवन’
जिसका अर्थ
मैं जानता नहीं
मुझे जीना चाहता है।
‘मृत्यु’
जिसका अर्थ
मैंने बाबूजी से पूछा था
जाने कहाँ चले गये
बिना उत्तर दिये
शायद खेतों की ओर
नहीं, स्कूल गये होंगे
आज सात साल, तीन महीना
और बीसवाँ दिन भी बीत गया
लौट कर नहीं आये
क्या मृत्यु इसी को कहते हैं ?
हाँ, उत्तर अगर हाँ है
तो मैं जीना चाहूँगा इसे।
क्योंकि –
माँ ने आकाश से रस्सी बाँध दी है
आ गया बसंत
बसंत आ गया
सामने हवाओं का झूला है
गाँव में सज रहा मेला है
पीली बर्फ जम गई खेतों पर
हरी आग लग गई जंगल में
दृश्यों में सिमट गई दृष्टि
समय थक गया
नब्ज़ें रूक गई रफ़्तार की
लेकिन मैं बढ़ता रहा
आँधियाँ विश्राम करने लगीं
किनारे पर पहुचने से पहले
नाव ऊंघने लगी
धरती ने ठीक से पाँव छुए भी नहीं
और चलने लगी धरती।
परिवर्तन,
कुछ तो परिवर्तन हुआ
माँ ने भीगी हथेलियों से
स्पर्श किया गालों को, जगा दिया
फिर दिखाया मुझे मेरा ‘लक्ष्य’
कल रात स्वप्न में
तोड़ कर मुट्ठी भर आकाश
और कुछ अधखिले सितारे
जेब में रख गये बाबूजी
वो आकाश वो सितारे
अब भी हैं मेरी जेब में
अब भी है याद ‘लक्ष्य’
झरना चढ़ने लगा पहाड़ पर।
परिवर्तन,
कुछ तो परिवर्तन हुआ
जीवन सोचता है जिसे
क्या वही मैं हूँ
जीवन चाहता है जिसे
क्या वही मैं हूँ
जीवन माँगता है जिसे
क्या वही मैं हूँ
मैं भी सोचने लगा हूँ जीवन को
मैं भी चाहने लगा हूँ जीवन को
मैं भी माँगने लगा हूँ जीवन को।
‘जीवन’
जिसका अर्थ
मैं जानता नहीं
मुझे जीना चाहता है।