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"बेबस ज़िंदगी / त्रिपुरारि कुमार शर्मा" के अवतरणों में अंतर

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ज़मीन और जिस्म के बीच सुगबुगाता आदमी
 
ज़मीन और जिस्म के बीच सुगबुगाता आदमी
 
 
जैसे फूट रही हो बाँस की कोपलें
 
जैसे फूट रही हो बाँस की कोपलें
 
 
छू ली मैंने बहती हुई रात
 
छू ली मैंने बहती हुई रात
 
 
कितनी सर्द, कितनी बेदर्द  
 
कितनी सर्द, कितनी बेदर्द  
 
 
करने लगी मज़ाक अपने आप से गरीबी
 
करने लगी मज़ाक अपने आप से गरीबी
 
 
कितनी रातों से नहीं सोती है नींद मेरी
 
कितनी रातों से नहीं सोती है नींद मेरी
 
 
भीग गये अब तो आँसू भी रोते-रोते
 
भीग गये अब तो आँसू भी रोते-रोते
 
 
एक सदी का सा एहसास देता है पल
 
एक सदी का सा एहसास देता है पल
 
 
घाव-सा कुछ है सितारों के बदन पर
 
घाव-सा कुछ है सितारों के बदन पर
 
 
आँखं छिल जायेंगी देखोगे अगर चाँद
 
आँखं छिल जायेंगी देखोगे अगर चाँद
 
 
काट दिये किसने पर हवाओं के
 
काट दिये किसने पर हवाओं के
 
 
बिल्ली के पंजों में आ गया बादल
 
बिल्ली के पंजों में आ गया बादल
 
 
आज फिर मुसलाधार बरसा है लहू
 
आज फिर मुसलाधार बरसा है लहू
 
 
पानी का रंग लाल है सारे नालों में
 
पानी का रंग लाल है सारे नालों में
 
 
एकत्र करता हूँ बोतल में काली धूप
 
एकत्र करता हूँ बोतल में काली धूप
 
 
मुट्ठी से फिसल जाती है ज़िन्दगी मेरी
 
मुट्ठी से फिसल जाती है ज़िन्दगी मेरी
 
 
देख रहा है उदास काँच का टूकड़ा
 
देख रहा है उदास काँच का टूकड़ा
 
 
आज भी टेढ़ी है उस कुतिया की दुम
 
आज भी टेढ़ी है उस कुतिया की दुम
 
 
मचलती जाती है नदी मेरी बाहों में
 
मचलती जाती है नदी मेरी बाहों में
 
 
कितना मटमैला है शाम का क्षितिज
 
कितना मटमैला है शाम का क्षितिज
 
 
टूट गया कोई हरा पत्ता डायरी से
 
टूट गया कोई हरा पत्ता डायरी से
 
 
वर्षों से खाली पड़ा है एक कमरा
 
वर्षों से खाली पड़ा है एक कमरा
 
 
चूम लेती है मुझे तस्वीर बाबूजी की
 
चूम लेती है मुझे तस्वीर बाबूजी की
 
 
याद का कोहरा घना है बहुत
 
याद का कोहरा घना है बहुत
 
 
वह जो मिला था पॉकेटमार था शायद
 
वह जो मिला था पॉकेटमार था शायद
 
 
चॉकलेट नहीं है अब जेब में मेरी
 
चॉकलेट नहीं है अब जेब में मेरी
 
 
हर एक पल बढ़ती रही भूख बच्चों की
 
हर एक पल बढ़ती रही भूख बच्चों की
 
 
उबलता रहा सम्बन्ध का सागर
 
उबलता रहा सम्बन्ध का सागर
 
 
खो गई जाने कहाँ दूध-सी मुस्कान
 
खो गई जाने कहाँ दूध-सी मुस्कान
 
 
पिछले साल माँ ने मेरी स्वेटर पर
 
पिछले साल माँ ने मेरी स्वेटर पर
 
 
उकेरा था एक नदी और एक चिड़िया
 
उकेरा था एक नदी और एक चिड़िया
 
 
नदी में डूब कर मर गई वह चिड़िया
 
नदी में डूब कर मर गई वह चिड़िया
 
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और बन्द हो गया आदमी का सुगबुगाना
और बन्द हो गया आदमी का सुगबुगाना
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01:39, 25 मई 2011 के समय का अवतरण

ज़मीन और जिस्म के बीच सुगबुगाता आदमी
जैसे फूट रही हो बाँस की कोपलें
छू ली मैंने बहती हुई रात
कितनी सर्द, कितनी बेदर्द
करने लगी मज़ाक अपने आप से गरीबी
कितनी रातों से नहीं सोती है नींद मेरी
भीग गये अब तो आँसू भी रोते-रोते
एक सदी का सा एहसास देता है पल
घाव-सा कुछ है सितारों के बदन पर
आँखं छिल जायेंगी देखोगे अगर चाँद
काट दिये किसने पर हवाओं के
बिल्ली के पंजों में आ गया बादल
आज फिर मुसलाधार बरसा है लहू
पानी का रंग लाल है सारे नालों में
एकत्र करता हूँ बोतल में काली धूप
मुट्ठी से फिसल जाती है ज़िन्दगी मेरी
देख रहा है उदास काँच का टूकड़ा
आज भी टेढ़ी है उस कुतिया की दुम
मचलती जाती है नदी मेरी बाहों में
कितना मटमैला है शाम का क्षितिज
टूट गया कोई हरा पत्ता डायरी से
वर्षों से खाली पड़ा है एक कमरा
चूम लेती है मुझे तस्वीर बाबूजी की
याद का कोहरा घना है बहुत
वह जो मिला था पॉकेटमार था शायद
चॉकलेट नहीं है अब जेब में मेरी
हर एक पल बढ़ती रही भूख बच्चों की
उबलता रहा सम्बन्ध का सागर
खो गई जाने कहाँ दूध-सी मुस्कान
पिछले साल माँ ने मेरी स्वेटर पर
उकेरा था एक नदी और एक चिड़िया
नदी में डूब कर मर गई वह चिड़िया
और बन्द हो गया आदमी का सुगबुगाना