भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हज़ारों रंग से बिखरे हैं चारसू मेरे / त्रिपुरारि कुमार शर्मा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिपुरारि कुमार शर्मा }} {{KKCatTriveni}} <poem> हज़ारों रंग …) |
(कोई अंतर नहीं)
|
00:56, 26 मई 2011 के समय का अवतरण
हज़ारों रंग से बिखरे हैं चारसू मेरे
मगर ये रूह है रंगीन कहाँ होती है
तुम्हारे रंग की अब भी तलाश है मुझको