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"तो फिर बदला क्या? / शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर

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राजकाज का  
 
राजकाज का  
 
तो फिर क्या बदला?
 
तो फिर क्या बदला?
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निर्वाचन की गहमागहमी  
 
निर्वाचन की गहमागहमी  
 
जब तब होती है,  
 
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खर्च बढे ंतो कर्ज शीश पर  
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खर्च बढे तो कर्ज शीश पर  
 
जनता ढोती है।
 
जनता ढोती है।
 
दल बदले  
 
दल बदले  
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जैसी की तैसी  
 
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तो फिर बदला क्या?
 
तो फिर बदला क्या?
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कर्ज कमीशन घटा न तिल भर  
 
कर्ज कमीशन घटा न तिल भर  
 
सुविधा शुल्क बढ़ा  
 
सुविधा शुल्क बढ़ा  
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कागज बदला  
 
कागज बदला  
 
स्याही बदली  
 
स्याही बदली  
बदली बदल गयी भाषा  
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बदल गयी भाषा  
 
अर्थ रहा  
 
अर्थ रहा  
 
जैसे का तैसा  
 
जैसे का तैसा  
 
तो फिर बदला क्या?
 
तो फिर बदला क्या?
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बंद मुठ्ठियों में जिन हाथों  
 
बंद मुठ्ठियों में जिन हाथों  
 
थी जाडे की धूप  
 
थी जाडे की धूप  

13:26, 27 मई 2011 का अवतरण

तो फिर बदला क्या?
 
राजा बदला,
मंत्री बदले,
बदली राज सभा
ढंग न बदला
राजकाज का
तो फिर क्या बदला?

निर्वाचन की गहमागहमी
जब तब होती है,
खर्च बढे तो कर्ज शीश पर
जनता ढोती है।
दल बदले
निष्ठाऐं बदलीं
नारे बदल गये
नीति रही
जैसी की तैसी
तो फिर बदला क्या?

कर्ज कमीशन घटा न तिल भर
सुविधा शुल्क बढ़ा
युवराजों ने विधि विधान को
निज अनुरूप गढा
कागज बदला
स्याही बदली
बदल गयी भाषा
अर्थ रहा
जैसे का तैसा
तो फिर बदला क्या?

बंद मुठ्ठियों में जिन हाथों
थी जाडे की धूप
नाच रही उनके ही आंगन
बदले अपना रूप
मोहरे बदले
चालें बदलीं
बदल गयी बाजी
दॉव लगी
द्रोपदी न बदली
तो फिर बदला क्या?