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"पंख कटे पंछी निकले हैं / शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर
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टूटी पतवारो से निकले | टूटी पतवारो से निकले | ||
नौका पार लगाने | नौका पार लगाने | ||
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पंख कटे पंछी निकले हैं | पंख कटे पंछी निकले हैं | ||
भरने आज उडानें | भरने आज उडानें | ||
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13:29, 27 मई 2011 का अवतरण
पंख कटे पंछी निकले हैं
पंख कटे पंछी निकले हैं
भरने आज उडानें
कागज कk यानों पर चढकर
नील गगन को पाने
बैसाखी पर टिकी हुयी हैं
जिनकी खुद औकातें
बाँट रहे दोनो हाथों से
भर भर कर सौगातें
राह दिखाने घर से निकले
अंधे बने सयाने
मुट्ठी ताने घूम रहे वो
गाँव गली चौबारे
जिनके घर की बनी हुयी हैं
शीशे की दीवारें
हाथ कटे कारीगर निकले
ऊँचे भवन बनाने
जिनके घर में नहीं अन्न का
बचा एक भी दाना
दुनिया भर को भोजन देने
का ले रहे बयाना
टूटी पतवारो से निकले
नौका पार लगाने
पंख कटे पंछी निकले हैं
भरने आज उडानें