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"राज बांच रहा / शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर
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अखबारेां में प्रगति राज्य की | अखबारेां में प्रगति राज्य की | ||
− | राज बांच रहा | + | राज बांच रहा |
चढ़ा शनीचर प्रजा शीश पर | चढ़ा शनीचर प्रजा शीश पर | ||
नंगा नाच रहा | नंगा नाच रहा | ||
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नहर गांव तक पानी का | नहर गांव तक पानी का | ||
मीलों पता नहीं, | मीलों पता नहीं, | ||
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खुद की हुयी शिकायत खुद ही | खुद की हुयी शिकायत खुद ही | ||
दोषी जांच रहा | दोषी जांच रहा | ||
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खेत धना का पर मुखिया ने | खेत धना का पर मुखिया ने | ||
गेहूं बोया है | गेहूं बोया है | ||
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मिला न कब्जा बड़े बड़ों को | मिला न कब्जा बड़े बड़ों को | ||
सब कुछ छाज रहा | सब कुछ छाज रहा | ||
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न्यायालय के दरवाजों की | न्यायालय के दरवाजों की | ||
ऊंची ड्योढ़ी है | ऊंची ड्योढ़ी है | ||
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सेंध लगा दी उन हाथों ने | सेंध लगा दी उन हाथों ने | ||
जिन पर नाज रहा | जिन पर नाज रहा | ||
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अपराधों का ग्राफ घटा यह | अपराधों का ग्राफ घटा यह | ||
झूठ सरासर है | झूठ सरासर है |
13:42, 27 मई 2011 का अवतरण
राज बांच रहा,
अखबारेां में प्रगति राज्य की
राज बांच रहा
चढ़ा शनीचर प्रजा शीश पर
नंगा नाच रहा
नहर गांव तक पानी का
मीलों पता नहीं,
सिल्ट सफायी का धन पहुचा
जाकर और कहीं
खुद की हुयी शिकायत खुद ही
दोषी जांच रहा
खेत धना का पर मुखिया ने
गेहूं बोया है
अनगिन बार धना थाने जा
रोया धोया है,
मिला न कब्जा बड़े बड़ों को
सब कुछ छाज रहा
न्यायालय के दरवाजों की
ऊंची ड्योढ़ी है
जिसके हाथेंा में चाबुक है
उसकी कौडी है,
सेंध लगा दी उन हाथों ने
जिन पर नाज रहा
अपराधों का ग्राफ घटा यह
झूठ सरासर है
दर्ज न अनगिन हुये मामले
इतना अन्तर है
जिसकी जैसी मर्जी वो खुद
वैसा टांच रहा