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"साँपों की बस्ती / शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर

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कच्चे सपनों को  
 
कच्चे सपनों को  
 
बाँट रही दुख-दर्द ग़रीबी  
 
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अपनों अपनों को  
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अपने अपनों को  
 
मूँगफली बादाम हो गई  
 
मूँगफली बादाम हो गई  
 
सुरा हुई सस्ती ।
 
सुरा हुई सस्ती ।
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धन-कुबेर को अपने घर में  
 
धन-कुबेर को अपने घर में  
 
बैठी बन्द किए  
 
बैठी बन्द किए  
मूक दिशाएँ  देख रही बस
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मूक दिशाएँ  देख रही हैं 
 
अपने होठ सिए   
 
अपने होठ सिए   
 
कार विदेशी, ऊँची कोठी  
 
कार विदेशी, ऊँची कोठी  

13:54, 27 मई 2011 के समय का अवतरण

आँखों पर काले चश्मे हैं
बातों मे मस्ती
बदल रही हर रोज़ मुखौटा
साँपों की बस्ती

मीठा-मीठा ज़हर पिलाकर
कच्चे सपनों को
बाँट रही दुख-दर्द ग़रीबी
अपने अपनों को
मूँगफली बादाम हो गई
सुरा हुई सस्ती ।

धन-कुबेर को अपने घर में
बैठी बन्द किए
मूक दिशाएँ देख रही हैं
अपने होठ सिए
कार विदेशी, ऊँची कोठी
जता रही हस्ती ।
 
कुर्सी-कुर्सी पर बैठाकर
शतरंजी प्यादे
उल्टी सीधी चाल दिखाकर
बाँट रही वादे
लाखों के वारे-न्यारे हैं
दिखावटी सख़्ती ।
 
बदल रही हर रोज़ मुखौटा
साँपों की बस्ती