भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सुबहों पर धुँध भरे / शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 31: पंक्ति 31:
 
पैने नाखूनों के शीश  
 
पैने नाखूनों के शीश  
 
रखा ताज है  
 
रखा ताज है  
 +
 
सुबहों पर धुँध भरे  
 
सुबहों पर धुँध भरे  
 
मौसम का राज है  
 
मौसम का राज है  
 
</poem>
 
</poem>

13:56, 27 मई 2011 का अवतरण

सुबहों पर धुँध भरे
मौसम का राज है
लगता है वक़्त आज
हमसे नाराज़ है

सुविधा में डूबे हैं
किरनों के काफ़िले
 धूप और धरती के
बीच बढ़े फ़ासले
नदिया भी बूँद बूँद
जल को मोहताज है

बरगद की शाखों पर
चीलों का वास है
दिशा-दिशा स्याह हुई
अंधा आकाश है
पनघट की ईट-ईंट
हुई दगाबाज है

चन्दन ने पहन लिए
जाने कब बघनखे
गिद्ध-भोज में शामिल
मलमल के अँगरखे
पैने नाखूनों के शीश
रखा ताज है

सुबहों पर धुँध भरे
मौसम का राज है