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"शिकवा / इक़बाल" के अवतरणों में अंतर
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टिप्पणी: शिकवा इक़बाल की शायद सबसे चर्चित रचना है जिसमें उन्होंने मुस्लिमों के स्वर्णयुग को याद करते हुए ईश्वर से मुसलमानों की हालत के बारे में शिकायत की है ।
क्यूं ज़ियाकार बनूं, सूद फ़रामोश रहूँ फ़िक्र-ए-फर्दा न करूँ महव-ए-ग़म-ए-दोश रहूँ हमनवीं मैं भी कोई गुल हूँ के ख़ामोश रहूँ ।