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"ज़िंदगी की चादर / अलका सिन्हा" के अवतरणों में अंतर
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21:18, 28 मई 2011 के समय का अवतरण
ज़िन्दगी को जिया मैंने
इतना चौकस होकर
जैसे कि नींद में भी रहती है सजग
चढ़ती उम्र की लड़की
कि कहीं उसके पैरों से
चादर न उघड़ जाए ।