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"नये वर्ष की पहली कविता / अलका सिन्हा" के अवतरणों में अंतर
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जैसे उत्साह में भरकर सुबह-शाम | जैसे उत्साह में भरकर सुबह-शाम | ||
नवजात शिशु के मसूढ़े पर | नवजात शिशु के मसूढ़े पर | ||
− | दूध का पहला | + | दूध का पहला दाँत उँगली से टटोलना। |
मगर मायूस कर देते हैं प्रकाशक | मगर मायूस कर देते हैं प्रकाशक | ||
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ऐन तीसरे माह– गर्भ में लड़की के होने का। | ऐन तीसरे माह– गर्भ में लड़की के होने का। | ||
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जो उपयोगी ही नहीं | जो उपयोगी ही नहीं | ||
जला दी जाए जो संपादक की रद्दी में | जला दी जाए जो संपादक की रद्दी में | ||
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− | रचने से पहले ही थक जाती है | + | रचने से पहले ही थक जाती है क़लम |
सूख जाती है सियाही | सूख जाती है सियाही | ||
हो जाती है भ्रूण-हत्या | हो जाती है भ्रूण-हत्या | ||
− | नए वर्ष की पहली कविता | + | नए वर्ष की पहली कविता की । |
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21:20, 28 मई 2011 के समय का अवतरण
नए वर्ष की पहली कविता का इंतज़ार करना
जैसे उत्साह में भरकर सुबह-शाम
नवजात शिशु के मसूढ़े पर
दूध का पहला दाँत उँगली से टटोलना।
मगर मायूस कर देते हैं प्रकाशक
कि कविता की माँग नहीं है आजकल
जैसे कि डॉक्टर खोलती है भेद
ऐन तीसरे माह– गर्भ में लड़की के होने का।
मायूसी होती है कि क्या करना है
किसी लड़की-सी कविता को रचकर
जिसकी आस ही नहीं किसी को
जो उपयोगी ही नहीं
जला दी जाए जो संपादक की रद्दी में
या फिर ख़ुद ही कर बैठे आत्मदाह
किसी की हवस का शिकार होकर ।
रचने से पहले ही थक जाती है क़लम
सूख जाती है सियाही
हो जाती है भ्रूण-हत्या
नए वर्ष की पहली कविता की ।