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"दु:ख की चादर समेट बाहों में / अशोक आलोक" के अवतरणों में अंतर

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ख्वाब देखे हैं इश्तिहारों में
 
ख्वाब देखे हैं इश्तिहारों में
 
चंद सांसों की ज़िन्दगी अपनी
 
चंद सांसों की ज़िन्दगी अपनी
रोज उड़ती है ये हवाओं में
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रोज़ उड़ती है ये हवाओं में
 
बात इतनी हसीन मत करिए
 
बात इतनी हसीन मत करिए
 
चाँद आने लगा है ख्वाबों में
 
चाँद आने लगा है ख्वाबों में

13:04, 5 जून 2011 का अवतरण

दु:ख की चादर समेट बाहों में
ख्वाब देखे हैं इश्तिहारों में
चंद सांसों की ज़िन्दगी अपनी
रोज़ उड़ती है ये हवाओं में
बात इतनी हसीन मत करिए
चाँद आने लगा है ख्वाबों में
गाँव पत्थर हुआ शहर गूंगा
लोग बदले हैं ईंटगारों में
कोई मुमकिन जवाब क्या देगा
जबकि उलझे हैं खुद सवालों में
कोई सूरज को ढूंढकर लाए
ऐसी बदली हुई फिज़ाओं में